Thursday, August 18, 2011

"Lo mashalon ko jala dala kisi ne" - Prasoon Joshi

Below is Prasoon Joshi's beautiful poem "Lo mashalon ko jala dala kisi ne" on the current rise of the country against corruption. I heard it on TimesNow during Arnab's newshour on Aug 18th. As an aside, if anybody is interested I used the Hindi language ITRANS method on my Ubuntu 10.10 for keying in the poem. It works like a charm.

लो मशालों को जगा डाला किसी ने
भोले थे अब कर दिया भाला किसी ने

है शहर ये कोयलों  का
ये मगर ना भूल जाना
लाल शोले भी इसी बस्ती में रेहते हैं युगों से
रास्तो मैं धूल है
कीचड भी है पर याद रखना
ये जमीन धुलती रही
संक्लप वाले आसुओं से
मेरे आंगन को है धो डाला किसी ने

लो मशालों को जगा डाला किसी ने
भोले थे अब कर दिया भाला किसी ने

आग बेवजह कभी घर से निकलती ही नही है
टोलियों जत्थे बनाकर चींख यूं चलती नही है
रात को भी देखने दो आज तुम सूरज के जलवे
जब तपेगी ईट तब ही होश में आयेंगे तलवे
तोड़ डाला मौन का ताला किसी ने
लो मशालों को जगा डाला किसी ने
भोले थे अब कर दिया भाला किसी ने



The poem is also available at http://blog.lipikaar.com/prasoon-joshi-poem-against-corruption/. A video is available at  http://indiatoday.intoday.in/site/video/prasoon-joshi-poem-against-corruption/1/148420.html.